सुधारशील कैथलिक अंगीकार

धर्मसुधार के 500वें वर्षगाँठ को चिन्हित करने के लिए एक विशुद्ध प्रोटेस्टेंट विश्वास-वचन

सुधारशील कैथलिक अंगीकार
विविध कलीसियाओं और धर्मवैज्ञानिक परम्पराओं के
हम प्रोटेस्टेंट एकजुट होकर क्या कहते हैं

हम विश्वास करते हैं …

त्रिएक परमेश्वर

कि परमेश्वर एक है, वह अत्यंत महान और भला है, समस्त दृश्य और अदृश्य वस्तुओं का रचयिता और पालनहार है, जीवन और ज्योति का सच्चा स्रोत है। जिसमें अपने आप में जीवन है और जो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा (मत्ती 28:19, 2 कुरि. 13:14) के रूप में तीन व्यक्तित्वों में अस्तित्व रखता है। परमेश्वर के तीनों व्यक्तित्व प्रकृति, वैभव, और महिमा में परस्पर समानता रखते हैं। त्रिएक परमेश्वर महिमामय प्रकाश और सर्वोच्च प्रेम में अनंतकाल से वास करता है। संसार के सृजन, पालन-पोषण, न्याय, और छुटकारा के लिए परमेश्वर जो कुछ करता है उससे यह प्रदर्शित होता है कि परमेश्वर कौन है। परमेश्वर की सिद्धता, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान, बुद्धि, शक्ति, और धार्मिकता, यह सब उद्धार के इतिहास में प्रकट किये गए हैं। परमेश्वर ने अपनी स्वतंत्र इच्छा से संसार की सृष्टि से पहले ही अपने लिए एक जनसमूह का निर्माण और चुनाव कर लिया ताकि वे उसकी महिमा और प्रशंसा के लिए (इफि. 1:3-14) उसकी निज प्रजा बनें (व्यवस्था. 7:6).

पवित्र धर्मशास्त्र

कि परमेश्वर ने पवित्र धर्मशास्त्र (बाइबल) में तथा पवित्र धर्मशास्त्र के द्वारा बात की है और आज भी बात कर रहा है। पवित्र धर्मशास्त्र ही मसीही विश्वास, विचार और जीवन के लिए एकमात्र अचूक और पूर्णतः स्पष्ट नियम और अधिकार है (केवल वचन). पवित्र धर्मशास्त्र ही परमेश्वर के सेवकों, नबियों और प्रेरितों के शब्दों में परमेश्वर की प्रेरणा से प्रकाशित वचन है, यह स्वयं परमेश्वर के जीवन और ज्योति का अनुग्रहपूर्ण आत्म-सम्प्रेषण है, और ज्ञान व पवित्रता में बढ़ने के लिए अनुग्रह का साधन है (भजन 119: 105). बाइबल पर उसकी समस्त शिक्षाओं के लिए विश्वास करना है, उसकी समस्त आज्ञाओं का पालन करना है, उसकी सब प्रतिज्ञाओं पर भरोसा रखना है और उसके समस्त प्रकाशन का आदर करना है (2 तीमु. 3:16).

मनुष्य

कि परमेश्वर अपनी भलाई समस्त प्राणियों पर प्रकट करता है, परन्तु मनुष्य जाति पर विशेष रूप से करता है, जिसे उसने अपने ही स्वरुप में, नर और नारी करके बनाया है (उत्पत्ति 1:26-27), और इस आधार पर समस्त स्त्री, पुरुष, और बच्चों को अनुग्रह के साथ गरिमा (मौलिक अधिकार) और आजीविका (उत्तरदायित्व) विरासत में प्रदान किया गया है।

पतित दशा

कि सृष्टि और मनुष्य की मूलभूत अच्छाई पाप के कारण भ्रष्ट हो चुकी है। प्रथम मनुष्यों के द्वारा अपनी मनमानी करते हुए सृष्टिकर्ता का इनकार तथा सृष्टि के नियम का उल्लंघन करने और जीवन के लिए परमेश्वर के ठहराए नियम को तोड़ने के कारण पाप उत्पन्न हुआ (रोमियों 3:23). नियम देनेवाले परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता के द्वारा आदम और हव्वा ने अपने स्वयं के लिए तथा अपनी आनेवाली पीढ़ियों के लिए व्यवस्था के बदले अव्यवस्था (रोमियों 8:20-21), धर्मी ठहराए जाने के बदले दोषारोपण, और जीवन के बदले मृत्यु ले आये (भजन 51:5; रोमियों 5:12-20).

यीशु मसीह

कि यीशु मसीह परमेश्वर का अनंत पुत्र है और वह हमारे लिए मनुष्य बना, वह हमारा उद्धार है (यूहन्ना 3:17), और परमेश्वर तथा मानवजाति के बीच एकमात्र मध्यस्थ (केवल मसीह) है (1 तीमु. 2:5). वह कुँवारी मरियम से पैदा हुआ, वह दाऊद का पुत्र और इस्राएल के घराने का सेवक है (रोमियों 1:3; 15:8), वह एक व्यक्ति है जिसमें दो प्रकृतियाँ हैं – वह वास्तव में परमेश्वर है और वास्तव में मनुष्य है। पतित संसार के टूटेपन और अव्यवस्था में प्रवेश करके उसने एक सम्पूर्ण मानवीय जीवन बिताई, फिर भी निष्पाप रहा, और अपने वचनों, कार्यों, स्वभाव, तथा दुःख उठाने के द्वारा परमेश्वर की ज्योति (सत्य) और जीवन (उद्धार) के निःशुल्क व प्रेमपूर्ण सम्प्रेषण को साकार किया।

मसीह का प्रायश्चित कर्म

कि परमेश्वर ने, जो कि अयोग्य व्यक्ति के प्रति भी दया का धनी है, मनुष्य के गलत कामों, भ्रष्टाचार, और दोष के लिए अनुग्रहपूर्वक उपाय किया है। उसने इस्राएल के मंदिर और पाप बलियों के माध्यम से अस्थायी और प्रतीकात्मक तरीके से और फिर उसके बाद यीशु मसीह के मानव शरीर रूपी मंदिर में (इब्रानियों 10:11-12) क्रूस पर एक बार और हमेशा के लिए सर्वसिद्ध बलिदानपूर्ण मृत्यु के द्वारा (रोमियों 6:10; 1 पतरस 3:18) सुनिश्चित और महिमामय तरीके से उपाय किया है। हमारे स्थान पर अपनी मौत के द्वारा मसीह ने परमेश्वर के प्रेम को प्रकट किया और परमेश्वर की न्याय को स्थापित रखा, हमारे दोष को दूर किया, हमें बंधक बनाकर रखनेवाली शक्तियों को पराजित कर दिया, और परमेश्वर के साथ हमारा मेल-मिलाप करा दिया (यशायाह 53:4-6, 2 कुरिन्थियों 5:21; कुलुस्सियों 2:14-15). हमें क्षमा की प्राप्ति सिर्फ अनुग्रह के कारण हुई है (केवल अनुग्रह), हमारे कार्यों या हमारी योग्यता के कारण नहीं; हमें शुद्धता की प्राप्ति केवल यीशु के लहू से हुई है, हमारे अपने पसीने या आँसुओं से नहीं।

सुसमाचार

कि सुसमाचार वह खुशखबरी है कि त्रिएक परमेश्वर ने अपना अनुग्रह प्रभु यीशु मसीह के जीवन, मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण में उंडेला है, ताकि उसके कार्य के द्वारा परमेश्वर के साथ हमारा मेल-मिलाप हो सके (रोमियों 5:1). प्रभु यीशु ने सिद्ध आज्ञाकारिता में जीवन बिताए फिर भी उन सब दुखों को सहा जो पापियों के लिए उचित था ताकि पापियों को अपने कार्यों के भरोसे अपनी स्वयं की धार्मिकता न अर्जित करनी पड़े, बल्कि परमेश्वर की प्रतिज्ञा की पूर्ति के रूप में मसीह पर भरोसा रख सकें और उसके साथ उत्तराधिकारी बनने के लिए विश्वास (केवल विश्वास) के द्वारा धर्मी ठहराए जा सकें। मसीह पापियों के बदले मर गया, पाप की मजदूरी को आत्मसात कर लिया (रोमियों 6:23), ताकि जो लोग अपने आप को उसे सौंप देते हैं वे उसके साथ पाप की शक्ति, दंड, और (अंततः) कार्यकलाप के लिए मर सकें। मसीह एक नवीनीकृत और पुनर्स्थापित सृष्टि के पहिलौठे के रूप में जिलाया गया था, ताकि जिन लोगों को आत्मा उसके साथ विश्वास में एक करती है वे भी जिलाये जाएँ और उसमे एक नयी मानवजाति बन सकें (इफिसियों 2:15). परमेश्वर के स्वरुप में नए बनाये जाने के कारण वे अपने आप में मसीह के जीवन को जीने के लिए सक्षम किये जाते हैं। मसीह के साथ एक किये जाने के कारण तथा उद्धार के एकमात्र आधार में जीवित किये जाने के कारण पापी लोग परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप कर पते हैं। और प्रतिज्ञा के संतान के रूप में धर्मी ठहराए जाते हैं, परमेश्वर के परिवार में दत्तक लिए जाते हैं, पवित्र किये जाते हैं, और अंततः महिमान्वित किये जाते हैं।

पवित्र आत्मा का व्यक्तित्व और कार्य

कि पवित्र आत्मा त्रिऐक्य का तीसरा व्यक्ति है, और संसार में परमेश्वर का अदृश्य किन्तु सक्रिय व्यक्तिगत उपस्थिति है। वह विश्वासियों को मसीह के साथ जोड़ता है, उन्हें नया जन्म प्रदान करते हुए नयी सृष्टि बनता है (तीतुस 3:5), और उनके मनों को परमेश्वर के राज्य के जीवन और ज्योति की ओर तथा धरती पर शांति और न्याय की ओर लगाए रखता है। आत्मा उन सबमें वास करता है जिन्हें वह मसीह के साथ जीवित करता है, उन्हें विश्वास के द्वारा मसीह की देह में मिलता है, और मसीह के स्वरुप के साथ उनको दृढ़ करता है। ताकि जैसे-जैसे वे ज्ञान, बुद्धि, और प्रेम के साथ संत होने की परिपक्वता में बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे उसकी महिमा करते जाएँ। संत होना मसीह की परिपूर्णता के स्तर का मापदंड है (इफिसियों 4:13). आत्मा सत्य का प्रकाश है और प्रेम की वह आग है जो परमेश्वर के लोगों को लगातार शुद्ध और पवित्र करता जाता है। उन्हें मन फिराने और विश्वास करने के लिए उत्साहित करता है, उन्हें अलग-अलग वरदान देता है, उनकी गवाही को निर्देशित करता है और उनकी शिष्यता को निरंतर सामर्थ प्रदान करता है।

कलीसिया

कि एक, पवित्र, सार्वभौमिक (कैथलिक) और प्रैरीतिक कलीसिया परमेश्वर का नया समाज है। यह नयी सृष्टि का पहला फल है और सब युगों के छुड़ाए हुओं की सम्पूर्ण सहभागिता है, मसीह इसका प्रभु और मुखिया है। यह सच्चाई कि यीशु ही मसीह है, और जीवित परमेश्वर का पुत्र है, कलीसिया की अटल बुनियाद है (मत्ती 16:16-18; 1 कुरिन्थियों 3:11). स्थानीय कलीसिया स्वर्ग के राज्य का दूतावास और दृष्टान्त दोनों है। यह एक लौकिक स्थान है जहाँ उसकी इच्छा पूरी होती है और जहाँ वह उपस्थित है। यह हर उस जगह दिखाई देती है जहाँ दो या तीन उसके नाम से एकत्रित होते हैं और प्रेम के वचन और कार्यों के द्वारा उसके सुसमाचार का प्रचार करते हैं, शिष्यों को बपतिस्मा देने की प्रभु की आज्ञा का पालन करते हैं (मत्ती 28: 19), और प्रभु-भोज का उत्सव मानते हैं (लूका 22: 19).

बपतिस्मा और प्रभु-भोज

कि बपतिस्मा और प्रभु-भोज के दोनों संस्कार, जिन्हें हममें से कुछ लोग “सेक्रामेंट” कहते हैं, सुसमाचार की प्रतिज्ञा के प्रचार करनेवाले दृश्य शब्दों के रूप में आत्मा के द्वारा वचन से जुड़े हुए हैं। और इस प्रकार ये वह स्थान बन जाते हैं जहाँ इनको ग्रहण करने वाले मसीही वचन से मुलाकात करते हैं। बपतिस्मा और प्रभु-भोज विश्वासियों के लिए मसीह में जीवन को सम्प्रेषित करते हैं, उन्हें उनके इस आश्वासन में दृढ़ करते हैं कि मसीह, जो कि परमेश्वर के लोगों के लिए परमेश्वर का वरदान है, वास्तव में “हमारे लिए और हमारे उद्धार के लिए” है। और इस प्रकार ये संस्कार उन्हें उनके विश्वास में पोषण प्रदान करते हैं। बपतिस्मा और प्रभु-भोज धर्मसुधार की प्रमुख अंतर्दृष्टियों – परमेश्वर का वरदान (केवल अनुग्रह) और वह विश्वास जो उनकी प्रतिज्ञाओं को थामे रखता है (केवल विश्वास) – के लिए महत्वपूर्ण तत्व हैं। ये उस स्तर तक सुसमाचार की वास्तविक अभिव्यक्ति हैं जहाँ तक कि ये स्पष्ट रीति से मसीह की देह में (एक “रोटी … एक देह” – 1 कुरिन्थियों 10: 16-17), हमारे मरने, जीने, और सम्मिलित होने को दर्शाते हैं, और मसीह को तथा क्रूस पर उसके द्वारा अर्जित मेल-मिलाप को सच्चाई से प्रस्तुत करते हैं। मसीह के मेल-मिलाप स्थापित करने वाले लहू के माध्यम से पापों की अनुग्रहपूर्वक क्षमा की प्रतिज्ञा और परमेश्वर तथा एक-दूसरे के साथ संगति की प्रतिज्ञा का स्पष्ट स्मरण दिलाते हुए, घोषणा करते हुए और इनकी छाप लगाते हुए बपतिस्मा और प्रभु-भोज के संस्कार विश्वासियों को मजबूती प्रदान करते हैं। (1 कुरिन्थियों 11:26; कुलुस्सियों 1:20).

पवित्र जीवन

कि बपतिस्मा और प्रभु-भोज में सहभागी होकर, प्रार्थना और वचन की सेवकाई में सम्मिलित होकर, और सामूहिक आराधना की अन्य गतिविधियों में भाग लेकर हम परमेश्वर के लोगों के रूप में, एक पवित्र प्रजा के रूप में (1 पतरस 2:9-10) अपनी नई सच्चाई और पहचान में बढ़ते जाते हैं। हम मसीह की वास करनेवाली आत्मा के द्वारा मसीह को धारण करने के लिए बुलाये गए हैं। आत्मा की वास करनेवाली सामर्थ्य के द्वारा हम मसीह के शिष्यों के रूप में उसके अनुसरण में जीवन जीते हैं, व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों रीतियों से। और एक राजकीय याजकों के रूप में उसके उत्कृष्ट कार्यों की घोषणा करते हैं। और अपने शरीरों को परमेश्वर की सच्ची आराधना में आत्मिक बलिदान के रूप में अर्पित कर देते हैं। और संसार की बलिदानपूर्वक सेवा के लिए हमेशा और हर स्थान में अपने आप को प्रेम के कार्यों में लगाते हैं। निर्धनों के प्रति तरस रखते हैं और पीड़ितों के लिए न्याय के लिए काम में तत्पर रहते हैं। और सब लोगों के लिए यीशु मसीह के मार्ग, सच्चाई और जीवन की बुद्धिमानीपूर्वक गवाही देते हैं।

अंतिम बातें

कि परमेश्वर के अपने समय में और अपने तरीके से, सशरीर पुनरुत्थित और स्वर्गरोहित मसीह प्रत्यक्ष रूप में वापस आएगा ताकि शैतान और मौत पर अपनी जीत के द्वारा सम्पूर्ण संसार के लिए परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा कर सके (1 कुरिन्थिओं 15:26). वह संसार का न्याय करेगा। जो लोग अविश्वासी बने रहेंगे उन्हें वह स्वयं से अनंतकाल के लिए दूर कर देगा, जहाँ न उसका जीवन है और न उसका प्रकाश। परन्तु वह अपने लोगों को मेमने के विवाह-भोज के लिए दुल्हन के रूप में तैयार करेगा (प्रकाशितवाक्य 19: 7-9), व्याकुल मानों को विश्राम और महिमामय शरीरों को जीवन प्रदान करेगा (1 कुरिन्थिओं 15: 42-44; फिलिप्पियों 3:21), और वे अपने प्रभु की आनंदमय संगति में नए स्वर्ग और नई पृथ्वी में विजय के आनंद से भरपूर होंगे (प्रका. 21:1-2). वहाँ आश्चर्य, प्रेम और प्रशंसा से भरकर उसे निरंतर आमने-सामने देखेंगे (1 कुरिन्थिओं 13: 12; प्रका. 22: 4) और वे उसके साथ राज्य करेंगे (2 तीमु. 2: 12; प्रका. 22: 5).

केवल परमेश्वर की महिमा हो !